Laghu Pratikraman Notes


Notes for Laghu Pratikraman



  1. 5 मिथ्यात्व - एकांत, संशय, विपरीत, अज्ञान, विनय  (तत्वार्थसूत्र pg. 510-511)
  2. 12 अव्रत - पांच इन्द्रिय और मन के विषय एवं ५ स्थावर और एक त्रस की हिंसा. इन १२ प्रकार के त्याग रूप भाव न होना (तत्वार्थसूत्र pg. 514)
  3. 15 योग - मनोयोग के ४, वचन के ४ और काय के ७ 
  4. 25 कषाय - क्रोध, मान, माया लोभ * ४ (अनंतानुबंधी, अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान, संजुलन) + ९ नोकषाय 
  5. 3 दंड - मन, वचन, काय की अशुभ प्रवृति - यह तीन दंड है | रत्नकरण्ड श्रावकाचार pg. 304)
  6. 3 शल्य - १. मिथ्यादर्शन शल्य २. माया शल्य ३. निदान शल्य (रत्नकरण्ड श्रावकाचार pg. 317 - 320, तत्वार्थसूत्र pg. 484)
  7. 3 गारव -
  8. 3 मूढ़ता - (सम्यक्तव की घातक) १. लोकमूढ़ता २. देवमूढ़ता ३. गुरुमूढ़ता  (रत्नकरण्ड श्रावकाचार pg. 37 - 48 , 234)
  9. 4 आर्तध्यान - १. अनिष्ट संयोगज २. इष्ट वियोगज ३. रोग जनित ४. निदान जनित  (रत्नकरण्ड श्रावकाचार pg. 345 - 353)
  10. 4 रौद्रध्यान - १. हिंसानन्द २. मृषानंद ३. स्तेयानंद ४. परिग्रहानंद (रत्नकरण्ड श्रावकाचार pg. 353 - 356)
  11. 4 विकथा - १. चोरकथा २. स्त्रीकथा ३. राजकथा ४. भोजन कथा  (रत्नकरण्ड श्रावकाचार pg. 301)
  12. 5 स्थावर घात - वनस्पति, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु कायिक ५ स्थावर जीवों का घात 
  13. 6 त्रस घात - ३ विकलेन्द्रिय (२, 3, ४ इन्द्रिय), असंगी पंचेन्द्रिय and संगी पंचेन्द्रिय जीवों का घात 
  14. 7 व्यसन - १. जुआ २. माँस भक्षण ३. मद्यपान ४. वेश्या सेवन ५ शिकार करना ६. चोरी ७ परस्त्री सेवन (रत्नकरण्ड श्रावकाचार pg. 135)
  15. 7 भय - १. इस लोक का भय २. परलोक का भय ३. मरण का भय ४. वेदना का भय ५. अनरक्षा का भय ६. अगुप्ति का भय ७. अकस्मात् का भय (रत्नकरण्ड श्रावकाचार pg. 22 )
  16. 8 मद - १. ज्ञान २. पूजा ३. कुल ४. जाति ५. बल 6 ऋद्धि ७. तप ८. शरीर (रत्नकरण्ड श्रावकाचार pg. 49, 236 )
  17. 8 मूलगुण
    1. गृहस्थ के मद्य, माँस, मधु के त्याग सहित पांच अणुव्रतों को अष्ट मुलगुण कहते हैं | (रत्नकरण्ड श्रावकाचार pg. 110)
    2. उमर, कठूमर, गूलर, पीपल का गोल फल, बढ़ का फल, उदम्बर + मद्य, माँस, मधु का त्याग
  18. 10 बहिरंग परिग्रह - १. क्षेत्र  २. वास्तु  ३. हिरण्य (चांदी) ४. स्वर्ण ५. धन ६. धान्य ७. दासी ८. दास ९. कुप्य (कपड़े) १०. भांड (बर्तन) (रत्नकरण्ड श्रावकाचार pg. 21 )
  19. 14 अंतरंग परिग्रह - १. स्त्री, पुरुष, नपुंसक वेद २. राग ३. द्वेष ४. हास्य ५. रति ६. अरति ७. शोक ८. भय ९. जुगुप्सा १०. क्रोध ११. मान १२. माया १३. लोभ (रत्नकरण्ड श्रावकाचार pg. 20 )
  20. 15 प्रमाद - मूल में प्रमाद ५ प्रकार के हैं - विकथा, कषाय, इन्द्रिय, निद्रा और प्रणय। इनके क्रम से ४-४-५-१-१  हैं 

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